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राष्ट्रीय
अध्यक्ष का सन्देश
आज
भारत एक सम्पूर्ण प्रभुता सम्पन्न गण्राज्य है। बावजूद इस
सच्चाई के आज भी छदम रूप से देश की एकता व अखंडता पर बार-बार
प्रहार हो रहे हैं। राष्ट्र विरोधी शक्तियां राष्ट्रवादी भावना
की उदासीनता से प्रबल होती जा रही है। फलस्वरूप समग्र राष्ट्र
में एक चिन्ताजनक वातावरण बनता चला जा रहा है। यह सोचकर दुख
होता है कि जिस काल में भारत राजनीतिक धरातल पर पूरी तरह से
एकीकृत नहीं था, उस समय भी सांस्कृतिक एकता एवं भावनात्मक एकता
के सूत्रों से वह आसक्त था। लगता है कि वतर्मान में वह सूत्र्
कमजोर पड़ गए हैं और राष्ट्रीय भावना को प्रभावित करने वाले सभी
सूत्र् मूक दर्शक बनकर रह गए है। कतर्व्यविमूढ़ता कि हमारी इस
स्थिति ने राष्ट्रियेता की भावना के हमारी आस्थाओं के मजबूत
स्तम्भों की हिलाकर रख दिया है।
आज इस सच्चाई से इंकार नही किया
जा सकता है कि वोटों की राजनिति ने देश में अलगाववादी मानसकिता
को पुष्पित एवं पल्लवित किया है, जिसके कारण ही व्यापक
राष्ट्रहित की घोर उपेक्षा हुई है। सत्ता के गलियारों तक
पहुंचने के लिए साम्प्रदायिक एवं जातिवाद विशेषाधिकार के
प्रतिवाद की नीति ने लोकतंत्र् की मूल भावना पर ही कुठारघात नहीं
किया है, वरन` हमारी राष्ट्रियेता की भावनाएं भी कुण्ठित हुई
है और उन्हें आघात पहुंचा है।
यह
भी एक अत्यन्त दुख का विषैय है कि आजादी के बाद जिस पीढ़ी ने
जन्म लिया है वह राष्ट्रियेता की भावना से लगभग शून्य एक
दिशाहीन पीढ़ी है। स्वतंत्र्ता संग्राम की कोई स्मृति उसे
प्रेरित नहीं करती। आजादी की लड़ाई में होने वाले स्वतंत्र्ता
सेनानियों के त्याग व बलिदान से भी उसमें कोई आंदोलन व
कतर्व्यबोध नहीं जागता है। यह एक संस्कारहीन-कर्ताव्येविमूढ़
पीढ़ी है जो परिश्रम व संघर्ष के कठिन व लम्बे रास्ते के स्थान
पर झूठ कपट व धोखाधड़ी की छोटी पगडण्डियों के सहारे सफलता की
ऊंची मंजिल हासिल करना चाहिती है। परिणाम स्वरूप राष्ट्रियेता
की प्राणवायु विहीन इस पीढ़ी की अकर्मण्यता ने भारत राष्ट्र की
वतर्मान समस्याओं को और अधिक गम्भीर बना दिया है।
तनवीर अहमद 'सन्नी' |